Jaya Ekadashi vrat 2025 : जया एकादशी व्रत कथा : कैसे मिला पापों से छुटकारा!

Jaya Ekadashi vrat katha : हिंदू धर्म में एकादशी व्रत का बहुत महत्वपूर्ण स्थान है। जया एकादशी के दिन पालनहार भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की पूजा और व्रत किया जाता है। इस दिन व्रत रखते हैं और उनसे सुख-शांति का आशीर्वाद मांगते हैं। मान्यता है कि जया एकादशी व्रत में कथा का पाठ करने या सुनने से पूजा सफल होती है और घर में खुशियों का आगमन होता है।

जया एकादशी व्रत कथा 

जया एकादशी के विषय में जो कथा प्रचलित है, उसके अनुसार धर्मराज युधिष्ठिर ने भगवान श्री कृष्ण से निवेदन किया कि माघ शुक्ला की एकादशी में किन की पूजा की जाती है और इस एकादशी का क्या महत्व है। श्री कृष्ण कहते हैं कि माघ शुक्ल पक्ष की एकादशी को जया एकादशी कहा जाता है। यह एकादशी बहुत ही पुण्य है। इस एकादशी का व्रत करने से व्यक्ति को भूत-प्रेत और पिशाच की योनि से मुक्ति मिल जाती है।

Jaya Ekadashi vrat 2025 : जया एकादशी व्रत कथा : कैसे मिला पापों से छुटकारा!

श्री कृष्ण इस संदर्भ में युधिष्ठिर को एक कथा सुनाते हैं। कथा इस प्रकार है:

स्वर्ग में उत्सव चल रहा था। इसी उत्सव में सभी देवता, सिद्ध संत और दिव्य पुरुष विराजमान थे। उस समय गंधर्व गायन कर रहे थे और गंधर्व कन्याएं नृत्य प्रस्तुत कर रही थीं। सभा में माल्यार्पण नाम का एक गंधर्व और पुष्पवती नाम की गंधर्व कन्या का नृत्य चल रहा था।

इसी बीच, पुष्पवती की नजर जैसे ही हिमालय पर्वत पर पड़ी, वह उसे मोहित हो गई। पशुपति सभा की मर्यादा को भूलकर वह ऐसा नृत्य करने लगी कि माल्यार्पण उसकी ओर आकर्षित हो गया। माल्यार्पण उसे गंधर्व कन्या का आकर्षण देखकर सुध-बुध खो बैठा। गायन की मर्यादा से भटककर उसके सुरताल ने उसका साथ छोड़ दिया।

इंद्रदेव को यह देखकर क्रोध आ गया और उन्होंने पुष्पवती और माल्यार्पण को अमर्यादीत कृत्य करने पर श्राप दे दिया कि अब तुम स्वर्ग से वंचित हो जाओगे और पृथ्वी पर निवास करोगे और तुम मृत्यु लोक में पिशाच योनि को प्राप्त होंगे।

इस श्राप से तत्काल ही वे दोनों पिशाच बन गए और हिमालय पर्वत पर एक वृक्ष के नीचे उनका निवास बन गया। यहाँ पिशाच योनि में उन्होंने बहुत ही कष्ट भोगे। एक बार माघ शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन दोनों बहुत दुखी थे। उस दिन वे केवल फलाहार पर रहे। रात्रि के समय दोनों को बहुत ठंड लग रही थी, अतः वे दोनों रात भर बैठकर जागते रहे। ठंड के कारण उनकी मृत्यु हो गई और अनजाने में ही उन्होंने जया एकादशी का व्रत किया।

ऐसा होने से दोनों को पिशाच योनि से मुक्ति मिल गई। अब माल्यार्पण और पुष्पवती पहले से भी सुंदर हो गए और स्वर्ग लोक में उन्हें स्थान मिल गया। देवराज ने जब स्वर्ग लोक में उन्हें देखा तो वह चकित रह गए और पिशाच योनि से मुक्ति कैसे मिली, यह प्रश्न किया।

माल्यार्पण ने कहा, “भगवान विष्णु की जया एकादशी का प्रभाव है। हम इस एकादशी के प्रभाव से पिशाच योनि से मुक्त हुए हैं।” इंद्रदेव यह देखकर अति प्रसन्न हुए और उन्होंने कहा, “आप जगदीश्वर के भक्त हैं, इसलिए अब आप मेरे लिए आदरणीय हैं और अब स्वर्ग में आनंदपूर्वक रहकर विहार करें।”

इस प्रकार भगवान श्री कृष्ण ने यह कथा युधिष्ठिर को सुनाई और कहा कि जया एकादशी के दिन जगतपति भगवान विष्णु ही सर्वदा पुजनीय हैं। जो श्रद्धालु भक्त इस एकादशी का व्रत रखते हैं, उन्हें दशमी तिथि को एक समय आहार करना चाहिए। इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि वह आहार सात्त्विक हो। एकादशी के दिन श्री भगवान विष्णु का ध्यान करके संकल्प करें और फिर धूप, दीप, चंदन, फल, तिल और पंचामृत से भगवान विष्णु का पूजन करें। पूरे दिन इस व्रत को रखें और संभव हो तो रात्रि में जागरण कर सकते हैं।

अगर रात्रि में व्रत संभव न हो तो फलाहार करें। द्वादशी के दिन ब्राह्मणों को भोजन करवा कर उन्हें सुपारी देकर विदा करें और पूजन करें। इस प्रकार नियम और निष्ठा से व्रत रखने वाले व्यक्ति को पिशाचनी नहीं भोगनी पड़ती।

तो यह थी जया एकादशी की व्रत कथा। आपको यह कथा कैसी लगी, कृपया कमेंट करके जरूर बताएं।

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