कुंभ मेला क्यों मनाया जाता है :कुंभ मेला विश्व का सबसे विशाल सांस्कृतिक और धार्मिक मेला है, जहां भारत के विभिन्न हिस्सों से लोग एकत्र होते हैं। इस अवसर पर लोग नदियों में स्नान करते हैं, संतों के प्रवचन सुनते हैं और आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त करते हुए अपने जीवन को बेहतर बनाने के उपायों को समझते हैं। आइए जानते हैं कि कुंभ मेला क्या है, इसे क्यों मनाया जाता है, और इसके आयोजन का स्थान और समय क्या है।
कुंभ मेला क्यों मनाया जाता है?
वैज्ञानिक दृष्टिकोण: कुंभ मेला एक गहरे वैज्ञानिक आधार पर आधारित है। जब कुंभ मेला आयोजित होता है, तो सूर्य में विस्फोटों की संख्या बढ़ जाती है, जिसका पृथ्वी पर असर होता है। हर ग्यारह से बारह साल में सूर्य में यह परि0वर्तन होते हैं, और संभवतः प्राचीन ऋषि इस घटनाक्रम को जानते थे, इसीलिए कुंभ मेला आयोजित किया जाता है।
पौराणिक कथा: समुद्र मंथन के दौरान सबसे पहले कालकूट नामक विष निकला, जिसे भगवान शंकर ने अपने कंठ में रोक लिया, जिससे वे नीलकंठ कहलाए। अंत में समुद्र मंथन से अमृत से भरा घड़ा निकला। देवताओं और राक्षसों के बीच इस अमृत के बंटवारे को लेकर युद्ध हुआ। अमृत कुंभ लेकर देवता जयंत भागे, और राक्षसों ने उनका पीछा किया। इस युद्ध के दौरान अमृत के कुछ बूंदें चार स्थानों पर गिरीं—हरिद्वार, प्रयाग, उज्जैन और नासिक। इसी कारण इन स्थानों पर हर 12 वर्ष में कुंभ मेला आयोजित होता है। इस दौरान इन नदियों का पानी अमृत के समान माना जाता है, और स्नान तथा आचमन का विशेष महत्व होता है।
कुंभ मेला कहाँ और कब आयोजित होता है? #कुंभ मेला क्यों मनाया जाता है #Mahakumbh 2025
कुंभ क्या है?
कुंभ का अर्थ होता है ‘घड़ा’। कुंभ केवल एक मेला नहीं, बल्कि एक महत्वपूर्ण महापर्व है। सभी पर्वों में कुंभ का स्थान सर्वोच्च माना जाता है। यह परंपरा भारत में वैदिक काल से चली आ रही है, जब ऋषि-मुनि नदियों के किनारे एकत्र होकर धार्मिक और आध्यात्मिक विषयों पर विचार करते थे। आज भी यह परंपरा जारी है।
- नासिक में कुंभ मेला: जब बृहस्पति सिंह राशि में प्रवेश करता है, तब गोदावरी नदी के तट पर नासिक में कुंभ मेला आयोजित होता है। अमावस्या के दिन बृहस्पति, सूर्य और चंद्रमा कर्क राशि में प्रवेश करते हैं, तो भी नासिक में कुंभ होता है। इसे सिंहस्थ भी कहते हैं, क्योंकि बृहस्पति सिंह राशि में प्रवेश करता है।
- उज्जैन में कुंभ मेला: जब बृहस्पति सिंह राशि में और सूर्य मेष राशि में प्रवेश करते हैं, तब उज्जैन में कुंभ मेला आयोजित होता है। इसके अलावा, कार्तिक अमावस्या के दिन सूर्य और चंद्रमा के साथ बृहस्पति के तुला राशि में प्रवेश करने पर भी कुंभ मेला होता है। इसे भी सिंहस्थ कहा जाता है, क्योंकि बृहस्पति सिंह राशि में प्रवेश करता है।
- हरिद्वार में कुंभ मेला: जब बृहस्पति कुंभ राशि में प्रवेश करता है और सूर्य मेष राशि में होता है, तब हरिद्वार में कुंभ मेला आयोजित होता है। हरिद्वार और प्रयाग के बीच छह साल के अंतराल पर अर्धकुंभ का आयोजन होता है।
- प्रयागराज में कुंभ मेला: जब बृहस्पति और सूर्य मकर राशि में प्रवेश करते हैं और चंद्रमा अमावस्या के दिन इस राशि में होते हैं, तब प्रयागराज में कुंभ मेला होता है। एक अन्य गणना के अनुसार, मकर राशि में सूर्य और वृष राशि में बृहस्पति के प्रवेश पर भी प्रयाग में कुंभ का आयोजन होता है।
कुंभ मेला क्यों मनाया जाता है : कुंभ का समय और महत्व:
कुंभ मेला हर तीन साल के अंतराल पर हरिद्वार से प्रारंभ होता है, और फिर प्रयाग, नासिक और उज्जैन में इसका आयोजन होता है। हरिद्वार और प्रयाग के कुंभ मेलों के बीच तीन साल का अंतर होता है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, देवताओं और राक्षसों के बीच अमृत कलश के लिए बारह दिन तक युद्ध चला था। हिंदू पंचांग में देवताओं के बारह दिन मनुष्यों के बारह वर्षों के बराबर माने गए हैं, इस कारण कुंभ मेला हर बारह वर्ष में आयोजित होता है। इस आधार पर कुल बारह कुंभ होते हैं, जिनमें से चार का आयोजन पृथ्वी पर और आठ का आयोजन देवलोक में होता है। हर 144 वर्षों में महाकुंभ का आयोजन होता है, जिसे अन्य कुंभ मेलों से अधिक महत्व प्राप्त होता है।